बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान
प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
शैशवावस्था में बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
अथवा
शैशवावस्था में बालकों के संवेग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
संवेगात्मक विकास
(Emotional Development)
संवेग शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Emotion का हिन्दी रूपान्तर है। Emotion लेटिन भाषा के Emover शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है “To move To Stired, To arouse, To excited" अर्थात् " हिला देना उत्तेजित करना" भड़क उठना।
जब संवेगों की उत्पति होती है तो व्यक्ति का शरीर उत्तेजित व उद्वेलित हो जाता है।
संवेग व्यक्ति को झकझोर कर रख देता है। एक क्रोधिक व्यक्ति का अवलोकन करें तों पायेंगे कि उसका चेहरा क्रोध से लाल, दाँत किटकिटाते हुए, ओठ फड़फड़ाते हुए, मुठियाँ भींची हुई, हाथ एवं पैर तने हुए तथा सम्पूर्ण शरीर इतना अधिक उत्तेजित एवं उद्वेलित दिखाई देता है।
प्राणी के विकास क्रम में संवेगात्मक विकास का बड़ा महत्व है। संवेग प्राणी के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं। यदि किसी व्यक्ति का संवेगात्मक विकास सुचारू रूप से नहीं होता है तो उसका व्यक्तित्व निर्माण भी सही प्रकार से नहीं होता है। प्राणी के जीवन में संवेगात्मक विकास समान गति से नहीं होता है। प्रत्येक अवस्था में इसके विकास की गति भिन्न-भिन्न होती है।
शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास नवजात शिशु के संवेगात्मक विकास के अन्तर्गत नवजात शिशु के संवेग आते हैं। वैज्ञानिकों के बीच शिशुओं के संवेगात्मक विकास के सम्बन्ध में मतभेद है। कुछ विद्वानों के अनुसार नवजात शिशुओं में संवेग तो पाये जाते हैं किन्तु वे अविकसित होते हैं और उनकी अभिव्यक्ति केवल कुछ क्रियाओं तक ही सीमित होती है जबकि कुछ विद्वानों के मतानुसार नवजात शिशुओं में संवेगात्मक विकास नहीं होता है वह तो केवल बाह्य उद्दीपकों के प्रति अनुक्रियायें करते हैं।
वाटसन ने अपने अध्ययनों के बाद बताया कि शिशुओं में प्रमुख रूप से तीन संवेग पाये जाते हैं -
(1) क्रोध - शिशु क्रोध का प्रदर्शन तब करता है जब उसकी प्रिय वस्तु को उससे छीन लिया जाता हैं।
(2) भय तीव्र ध्वनियों और अकेलेपन का अहसास शिशु में भय संवेग की उत्पति करता है भय का प्रदर्शन, बालक रोक, हाथ-पैर पटकर और सास रोक कर करता।
(3) प्रेम प्रेम व स्नेहपूर्ण व्यवहार से शिशु में प्रेम संवेग की उत्पत्ति होती है। जब शिशु को सहलाया जाता है, गुदगुदाया जाता है या थपथपाया जाता है तो वह प्रेम का प्रदर्शन करता है।
इस प्रकार अभी शैशवावस्था में कुछ ही महत्वपूर्ण संवेग पाये जाते हैं तथा समय के साथ इनके संवेग कभी तीव्र तथा कभी कम हो जाते हैं।
बचनावस्था या स्कूल पूर्व बालकों में संवेगात्मक विकास बालकों में जन्म से ही संवेग पाया जाता है। गर्भावस्था में यदि माता सुखद संवेगों की अनुभूति करती रहती है तो बालक भी प्रसन्न तथा खुश रहता है। इसके विपरीत ईर्ष्या, कलह, दुःख, पीड़ा, भय आदि नकारात्मक संवेगों का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।
बाल्यावस्था में शैशवावस्था के संवेगों का ही विकसित रूप दिखाई देता है। इस अवस्था में शैशवावस्था की तुलना में संवेगों की तीव्रता में कुछ कमी आ जाती है क्योंकि बालक अब सामाजिक भय और निन्दा के कारण अपने संवेगों पर नियन्त्रण करना सीख जाता है।
बाल्यावस्था में बालकों में प्रकट होने वाले प्रमुख संवेग निम्नलिखित हैं -
(1) भय भय एक ऐसी अप्रिय आन्तरिक अनुभूति है जिसमें बालक या प्राणी अप्रिय और खतरनाक परिस्थितियों, वस्तु या प्राणी से दूर भागने की चेष्ठा करता है। भय की अवस्था में व्यक्ति आत्मविश्वास खो देता है।
भय की उत्पति के कारण - भय की उत्पत्ति के प्रमुख तीन कारण हैं
(1) व्यक्तिगत अप्रिय अनुभूतियाँ,
(2) अनुकरण,
(3) अतिरिक्त भय सम्बद्धत्ता।
(2) क्रोध (Anger) अन्य संवेगों की तुलना में क्रोध संवेग बालकों में अधिक प्रमुखता से दिखायी पड़ता है क्योंकि बालक यह समझता है कि क्रोध का प्रदर्शन कर वह माता-पिता द्वारा अपनी इच्छाओं की पूति कस लेगा।
क्रोध की उत्पति के कारण - बालकों में क्रोध की उत्पति का कोई एक निश्चित कारण नहीं होता है। बालकों में क्रोध के कई कारण हो सकते हैं जो निम्न हैं-
(1) यदि बालक की शारीरिक क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न किया जाता है तो बालक क्रोध का प्रदर्शन करने लगता है।
(2) शरीर की आन्तरिक दशायें जैसे भूख, प्यास, थकान, पीड़ा, रोग आदि अवस्था ओं में भी बालकों में क्रोध की उत्पति होती है।
(3) यदि बालक को अनावश्यक रूप से बार-बार चिढ़ाया जाता है तो वह क्रोध का प्रदर्शन करता है।
(4) समायोजन का अभाव बालकों में क्रोध की उत्पत्ति करता है।
(5) जब बालकों की इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती है तो वे क्रोध का प्रदर्शन करते हैं।
(3) ईर्ष्या ईर्ष्या की उत्पत्ति क्रोध से होती है और इसके अंदर सदैव अप्रसन्नता का भाव निहित रहता है। बालकों में ईर्ष्या की उत्पति विशेषकर से 2 वर्ष की अवस्था में होती है। जब परिवार में नये शिशु का आगमन हो जाता है तब माता-पिता का ध्यान नये शिशु की ओर अधिक आकर्षित हो जाता है।
ईर्ष्या के कारण यह निम्न हैं
(1) परिवार में नये बच्चे का आगमन पहले बालक में ईष्या का भाव उत्पन्न करता है क्योंकि माता-पिता का ध्यान नये शिशु की ओर अधिक हो जाता है।
(2) जब बच्चे के कार्यों या व्यवहारों की तुलना अन्य बच्चों से की जाती है।
(3) जब माता-पिता का व्यवहार अपने सभी बालकों के साथ समान नहीं होता है वे अपने किसी एक बालक को दूसरे की तुलना में अधिक प्यार, साधन तथा सुविधायें प्रदान करते है तो दूसरे बच्चे में ईर्ष्या की उत्पत्ति होती है।
(4) स्नेह - बालकों में स्नेह धनात्मक संवेग है। शिशुओं में इस संवेग की उत्पति आठ से दस महीने में होने लगती है और तब से इसका विकास क्रमिक गति से होता रहता है।
सबसे पहले स्नेह माँ के प्रति विकसित होता है। जब बालक 17 से 2 वर्ष कीआयु मेबालक दूसरे बच्चों के साथ खेलना प्रारम्भ करता है तो अपने स्नेह का प्रदर्शन दूसरे बच्चों के साथ भी करता है।
(5) आनन्द आनन्द भी धनात्मक संवेग है। इसकी उत्पत्ति सुख की भावना से होती है। इस संवेग की उत्पत्ति जन्म के तीसरे माह से हो जाती है किन्तु इसका स्वरूप इस समय अधिक स्पष्ट नहीं होता है। 1 वर्ष के बालक में आनन्द संवेग के प्रादुर्भाव को आसानी से देखा जा सकता है।
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- प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
- प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
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- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
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- प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
- प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?